छत्तीसगढ़ कौशल न्युज कुरूद: दीपावली पर्व के नजदीक आते ही जनपद पंचायत कुरूद परिसर में पारंपरिक लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली। नगर सहित आ...
छत्तीसगढ़ कौशल न्युज
कुरूद: दीपावली पर्व के नजदीक आते ही जनपद पंचायत कुरूद परिसर में पारंपरिक लोक संस्कृति की झलक देखने को मिली। नगर सहित आसपास के गांवों से आई महिलाओं ने टोकनी में सुआ (तोते) की प्रतीकात्मक मूर्तियाँ रखकर पारंपरिक सुवा नृत्य प्रस्तुत किया। उनकी मधुर लय और गीतों की गूंज से पूरा जनपद पंचायत परिसर छत्तीसगढ़ी लोक परंपरा की महक से भर गया।साड़ी और पारंपरिक परिधान में सजी महिलाएं गीत गाते हुए सुआ नृत्य करती नजर आईं। उनके गीतों में खेत-खलिहान, परिश्रम, और लोकजीवन की भावनाएं झलक रही थीं...
"कागज के खेती, कलम के नागर जोतो रे संगी सुवा करम के खेती, नन्द बैरागी सुवा न रे मोर..."
गीतों की ये लहरियाँ न केवल दीपावली की आहट का संदेश दे रही थीं, बल्कि छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकसंस्कृति का भी सजीव उदाहरण पेश कर रही थीं।इस अवसर पर जनपद पंचायत अध्यक्ष श्रीमति गीतेश्वरी साहू, जनपद सीईओ अमित कुमार सेन, और अन्य अधिकारीगण उपस्थित रहे। उन्होंने महिलाओं द्वारा प्रस्तुत इस पारंपरिक नृत्य की सराहना करते हुए कहा कि सुआ नृत्य हमारे समाज की सांस्कृतिक जड़ों को जीवित रखता है और नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं से जोड़ने का कार्य करता है।
सुआ नृत्य का महत्व छत्तीसगढ़ी परंपराओं में सुवा गीत का विशेष स्थान है। यह गीत और नृत्य गोंड आदिवासी महिलाओं द्वारा सदियों से गाया जाता रहा है। "सुआ" यानी तोता, जिसे यहाँ लोकविश्वास में समृद्धि और शुभता का प्रतीक माना जाता है। दीपावली से देवउठनी एकादशी तक, जब खेतों में धान की फसल पकने लगती है, तब महिलाएं सुआ गीतों के माध्यम से प्रकृति, श्रम और जीवन का उत्सव मनाती हैं। यह इस बात का भी प्रतीक है कि छत्तीसगढ़ की संस्कृति आज भी अपने मूल रूप में जीवंत है।




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